विधायी विभाग राज्य का एक सर्वाधिक महत्वपूर्ण विभाग है, जिस का कार्य प्रदेश की आवश्यकताओं के अनुरूप विधायिका द्वारा बनाये जाने वाले नये कानूनों का आलेखन तथा विधीक्षण एवं पुराने कानूनों की समय-समय पर समीक्षा करना होता है। विभाग के महत्व को दृष्टिगत रखते हुए वर्ष 2006 में केन्द्र सरकार के विधि और न्याय मंत्रालय द्वारा यह सुझाव दिया गया कि प्रत्येक राज्य में विधायी विभाग एक अलग विभाग हो, जिसमें विशेषज्ञ विधि-प्रारूपकार भी हों। भारतसंघ की सुशासन से सम्बन्धित ड्राफ्ट ऐक्शन प्लान में विधायी विभाग के उपरोक्त विन्दु को सम्मिलित किया गया और सभी राज्य सरकारों को विधायी विभाग को पृथक करने के निर्देश के साथ-साथ इसमें विशेषज्ञों की नियुक्ति की अपेक्षा की गयी।
दिनांक 27-10-2006 से पूर्व विधायी एवं संसदीय कार्य विभाग राज्य के न्याय विभाग का एक अंग था। भारत संघ की उपरोक्त अपेक्षानुसार राज्य का विधायी विभाग दिनांक 27 अक्टूबर, 2006 को न्याय विभाग से पृथक किया गया जिसके अन्तर्गत दो अनुभाग (विधायी अनुभाग-1 तथा विधायी अनुभाग-2) बनाये गये हैं।